यह कोई 2000 के आसपास की बात है जब भारत सरकार ने विदेशी निवेश कराने के लिये विदेशी भारतीयों को भारतमें निवेश के लिये न्योता दिया ।विदेशी शिक्षा भारत में उपलब्ध कराने के लिये तकनीकि कालेज अनाप शनाप संख्या में खोल दिये। यह खबर भास्कर की खबर की प्रतिक्रिया है।
उस समय भारत में इन कालेजों की संख्या भारत की जरूरत से ज्यादा थी। अकेला कर्नाटक राज्य के कालेजों की सीटें खाली रहती थी। उनकी गलती य़ह थी कि वे दाखिले के लिये लाखों रूपये चंदा वसूलते थे।जो हर किसी के बस की बात नहीं थी।
अब इन कालेजों ने बरोजगारी बढ़ा दी है इतने इंजिनियर बना दिये की , सबको भंगी ,चपरासी व स्वीपर के लिये भी काम नहीं मिलता हैं। जब काम नहीं मिलता व नौकली रूपयों में क्विटलों के भाव में मिलती हैं। तो कालेज बंद होगे ही । यदि चलेंगे तो रेहड़ी मार्केट या सब्जी मार्केट बन कर चल सकते हैं यही हाल प्राइवेट स्कूलों का है । सरकारे इतनी बेकार जहां भी वकेंसी खाली होती है भरने की बजाय वकैंसी ही समाप्त कर देती है ।
जो वकैंसी रखी है वह सब चुनाव जीतने से लिये रखी है, फार्म भरवाते हैं व कैंसिल कर देते हैं नैता लोग अपने वर्कर से कोर्ट केस करवा देते है ं चार साल केस चलता है पांचवे साल फिर भर्ती के फार्म भरवाते हैं, चुनाव संहिता लागु करवाते हैं अगली सरकार फिर वहीं वकैंसी निकालती है फिर वही धंधा लोगों को मुर्ख बनाने का।
तो आप ही बताये कालेज कैसे चलेगें। वहां नौकरी करने वालों की पेमेंट की पूछे तो कुत्ते भी हंसेगे।एक साल में निकाल देते हैं ताकि पैंमेंट न बढ़ानी पड़े।
चुनाव घोषणा हो ते ही चाहे अगले दिन बिना देश का एक पैसा खर्च किए चुनाव कराए जा सकते हैं बिना किसी दुःख व दुविधा के। जैसे ही पार्टी अपने उम्मीदवारों का चयन कर लें तभी चुनाव घोषित किए जाने चाहिए। केवल जितनी पार्टी है उतने ही मास्टर कम्प्यूटर चाहिए,हर एक पार्टी को चुनाव आयोग के साथ में ताकि चुनाव आयोग गड़बड़ी न कर सके। मोबाइल फोन से वोटर को आधार कार्ड से के नं से वोटिंग करवा लें। केवल एक दिन ही सबको शिक्षित किया जा सकता है इस बारे में। सारी पार्टीयों को अपने दफ्तर के कम्प्यूटर पर उसी दिन बिना गिनती किये पता चल जाएगा कि कितने वोट किस पार्टी को मिले हैं। चुनाव आयोग का कार्य केवल उन सभी के कम्प्यूटर के डाटा को इकट्ठा करना पड़ेगा यह बताने को कि कितने प्रतिशत मतदान हुआ है। बाकी काम पार्टी के कम्प्यूटर कर लेंगे। फूटी कोड़ी तक सरकार की नहीं होगी। चाहे तो कार्य काल समाप्त होने से पहले ही चुनाव सम्पन्न बिना किसी सुरक्षा बल के किया जा सकता है। किसी अधिकारी व कर्मचारी को कोटा पैसा तक सरकार को नहीं देना पड़ेगा टी ए, डी ए के रूप में। बस बेइमानों को दुःख होगा कि वे धांधली व बेईमानी न कर सके। ...
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