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राजपत्र की शक्ति का असर

 सभी  लोगों  नें  राजपत्र  के  बारे  में  अवश्य सुना  व पढ़ा और  देखा  होगा । उसकी शक्ति  के  बारे सारे  लोगों  को  शायद पता नहीं  वह  क्या  अच्छा व  क्या  बुरा  कर सकता  है । एक  ही भाषा  का दूसरा  रूप क्या  गुल खिला  सकता  इसका आप अन्दाजा  ही नही ळगा सकते 

इसके अच्छे  प्रभाव  देख  हम  बहुत  खुश  होते  लेकिन  दूसरे यानि  बुरे  असर  के  बारे समझोगे तो आपकी रूह   कांप  जायेगी।  इसके मैं दो  उदाहरण देकर समझा देता  हूं । जो काफी पीड़ा  दायक  होते है यहां  तक उसके  लिये  हम  बेवजह  ही   टोने टोटकों की  गिरफत में आ फसते हैं। अतः इस  प्रकार की सुविधा से बचना  चाहिये।

जिस प्रकार  आरक्षण विधेयक का  राजपत्र  है जिसने ळोगों को नौकरी आदि  की  सुविधा तो  प्रदान  की  है  लेकिन उसका प्रभाव उस बैंक खाते में पड़े रूपयों के भोग भोगने पड़ते हैं साथ में रूपयों से यदि घर  में कोई गलत सामान आ जाता  है तो उसका  दूष्परिणाम झेलना पड़ता  है।


उसी प्रकार से आरक्षण के दंश का कष्ट जन्म  दर जन्म  भोगना पड़ता है इससे मनुष्य को बह्मा के लेख में वही दुखदायक कष्ट फिर लिख  दिये जाते  है क्यों आपने वह उपेक्षित व घृणात्मक बड़े चाव व प्यार से चाहा  है इसका सबसे  बड़ा दृश्य भारत के गरीबों की गरीबी राजपत्र में लिख दी है और फिर हर दस वर्ष के बाद लिख दिया जाता है उसकी अवधि बढ़ा कर।

भारत  के  लोगों को गरीबी की ओर धकेल दिया जबकि जन्म बुरे भाग समाप्त करने के लिये लिया  था । दूसरा उदाहरण भारतीय जनउपभोगता अधिनियम जिसने  लोगों को  काम  करते  हुये भी काम चोर बना दिया । लोग मेहनत मजदूरी पहले भी करते थे और अब भी परन्तु राशन की दुकान से  क्या उसके सारी उपयोग की वस्तुये मिल जाती है।


जवाब  नहीं ,  फिर क्यों हम उस रोजगार को छोड़ राशन की दुकान की ओर देखते हैं किसानों के यहां  काम कर एक नौकरी की तरह पूरे वर्ष का गुजारा  मिलता था लेकिन अब इस  कानून ने उनकी मिट्टी पलित  कर दी  है  काम के लिये  दर भटकना  पड़ता  है राशन में मिलने वाले गेंहू से साल व्यतीत नहीं  होता  है

लोगों  को उपेक्षित व्यवहार  का  भी सामना करता हैै व लड़ाई व झगड़े का शिकार भी  होने लगे है यह दंश पता नहीं कितने जन्मों तक सहना पड़ेगा। यह तो रोज पिजा व केक खाने वालों की तरह है कुछ देर जीभ का स्वाद फिर बिमारियां का वरदान , हर रोज दवाओं पर जीवन काटो।


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