यदि कोई आदमी बिमार होता है तो उस रोग को शरीर से बाहर करने में बहुत कुछ खर्च होता है कोई किसी रूप में तो कोई किसी रुप में।
लेकिन सबसे ज्यादा खर्च बिमार आदमी के बुरे कर्मों का हिस्सा होता है जो पूर्व जन्म से घरणित होते हैं।
दूसरा सबसे जो सबसे बड़ा हिस्सा होता है शारीरिक कोशिकाओं का होता है।
रूपए व पैसों का हिस्सा सबसे कम खर्च होता है। क्यों कि दवाईयों पर होने वाले खर्च से कई गुणा खर्च डाक्टर की फीस व लैब में होने वाले खर्च है।
दवाई यदि १०००रुपये की होती है तो डॉक्टर की फीस व अन्य खर्च १००००० से भी ज्यादा होता है।
अतः दवाओं को बिमारियों का बोझ न बनाये , दवाएं केवल सप्लिमेंट काम करती हैं। रोग केवल व केवल ठग्गी के रुपए वापस होने पर कटता है।
सचेत रहें कहीं किसी की उधार तो बाकी नहीं बची है जो बाद में रोग कारण बने।
चुनाव घोषणा हो ते ही चाहे अगले दिन बिना देश का एक पैसा खर्च किए चुनाव कराए जा सकते हैं बिना किसी दुःख व दुविधा के। जैसे ही पार्टी अपने उम्मीदवारों का चयन कर लें तभी चुनाव घोषित किए जाने चाहिए। केवल जितनी पार्टी है उतने ही मास्टर कम्प्यूटर चाहिए,हर एक पार्टी को चुनाव आयोग के साथ में ताकि चुनाव आयोग गड़बड़ी न कर सके। मोबाइल फोन से वोटर को आधार कार्ड से के नं से वोटिंग करवा लें। केवल एक दिन ही सबको शिक्षित किया जा सकता है इस बारे में। सारी पार्टीयों को अपने दफ्तर के कम्प्यूटर पर उसी दिन बिना गिनती किये पता चल जाएगा कि कितने वोट किस पार्टी को मिले हैं। चुनाव आयोग का कार्य केवल उन सभी के कम्प्यूटर के डाटा को इकट्ठा करना पड़ेगा यह बताने को कि कितने प्रतिशत मतदान हुआ है। बाकी काम पार्टी के कम्प्यूटर कर लेंगे। फूटी कोड़ी तक सरकार की नहीं होगी। चाहे तो कार्य काल समाप्त होने से पहले ही चुनाव सम्पन्न बिना किसी सुरक्षा बल के किया जा सकता है। किसी अधिकारी व कर्मचारी को कोटा पैसा तक सरकार को नहीं देना पड़ेगा टी ए, डी ए के रूप में। बस बेइमानों को दुःख होगा कि वे धांधली व बेईमानी न कर सके। ...
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