इंडिया का हरियाणवी में अर्थ होता है इंडी, वह दो प्रकार की होती है। एक इंडी वह होती है जिसके ढक्कन नहीं होता है, वह इंडी हिजड़े के समान होती है।
दूसरी इंडी वह होती है जिसके ढक्कन लगा लेती है औरते। तथा दहेज के समान में दी जाती है। यह इंडी उस कंवारी लड़की के समान होती है जिसका सतीत्व की झिल्ली बरकरार होती है। यह वर पक्ष के लिए लड़की के चरित्र की पहचान के रुप में भेंट होती है लड़की की ओर से।
पहले वाली इंडी में यह इंगित करता है कि लड़की के रूप में हिजड़ा है या लड़की की झिल्ली फट चुकी है। यह संकेत भी ज्यादा तर लड़की स्वयं देती है। कारण कुछ भी हो सकता है जैसे साईकिल चलाने से, व्यायाम करने से भी झिल्ली फट जाती है। न की केवल बलात प्रयोग से या लड़की की ना समझी के कारण जैसे हस्तमैथुन से।
आज कल ज्यादातर झिल्ली फटती मिलती है जिस का कारण युद्धिस्टर के नारी समाज को दिये श्राप के कारण। जिसमें औरत या लड़की की योनि से खून आना झिल्ली फट ने की निशानी होती है। इसका स्टिक कारण पांचों पांडव भूत , प्रेत व ओपरी वायु के रूप में शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ताकि जन्म ले सके।
परन्तु कंवारी लड़की जन्म नहीं दे सकती है वह अपने शरीर से उन्हें बाहर निकाल देती है यह क्रिया पांचों पांडव अपनाते हैं अतः खून का रिसाव भी पांच दिन तक होता है। लड़कियां व औरतें उन्हें दण्डित करने के लिए चुराहे या रास्ते में डाल देती हैं।इस समय औरतों का शरीर दुर्गंध युक्त हो जाता है इसका कारण पांचों पांडव पानी में डूबकर मरे थे, उनके बड़े शरीरों के कारण ही वह बदबू औरत के शरीर से आती है।
इस के इलाज के लिए गन्दे कपड़े यानि कि सनेटरी नेपकिन को आग में जला देना चाहिए। ताकि शरीर से दूर्गंध न आए। पिण्ड दान करने की क्रिया भी इसी कड़ी का हिस्सा है। लेकिन पांडवों के गलत चरित्र व आचरण के कारण कोई भी उनको जन्म देने को तैयार नहीं होता है। दूसरा द्रोपदी का पांडवों को दिया गया श्राप है। वह केवल द्रोपदी ही हटा सकती है।
अब रही देश के सही नाम करने की तो उस समय जब महाराजा दशरथ राज करते थे वे उनके संन्यास ग्रहण का समय समीप आया तो राजयोग राजकुमार रामचंद्र के पक्ष में था। लेकिन महारानी कैकेई को दिये दो वचन जो युद्ध भूमि में दिये थे तब महारानी कैकेई ने समय आने पर मांगने की कह दिया था। राजकुमार रामचंद्र के राज्य अभिषेक के समय , महारानी कैकेई ने मन्थरा दासी के उकसाने पर राजयोग भंग कर ,राज राजकुमार भरत को दे दिया वो साथ में राजकुमार रामचंद्र को १४ वर्ष का बनवास दे दिया।
तब से चली आ रही गलत परम्परा के कारण राजतंत्र तो विलुप्त प्राय हो गया है। यह अपभ्रंश तब से लेकर अब तक नपुंसकों तक के हाथ में जाकर राजसत्ता बिल्कुल समाप्त हो चुकी है। इन नपुंसकों के राज लालसा की बदौलत भारत का नाम इंडिया पड़ा है।
अब यदि भारत सरकार में नपुंसक नहीं हैं तो इंडिया से नाम बदल कर रामराज्य कर सकते हैं ताकि नीच राज योग भी समाप्त हो जाते तथा सही राज सत्ता भी कायम की जा सके।
आगे चलकर राजा भरत को भी सही राजयोग वह राज सत्ता दी जा सके। इसके लिए जनता सरकार को लिखित रूप में दे। जब कोई संसद सदस्य कहीं आते तो देश का नाम बदलने के लिए कहें। जन्माष्टमी के अवसर पर मांओं से अनुरोध है कि वे आगे से किसी भी कृष्ण को जन्म न दे ताकि नपुंसक राजसत्ता पर काबिज न हो सके।
मेरी सम्पूर्ण विश्व की मांओं शुभकामनाएं आने वाले समय में एक सही राजपुरूष को जन्म दे।
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