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सरकार व सरकारी शिक्षा और दीक्षा


 सुबह सुबह हर कोई चाहता है कि किसी अच्छी खबर से दिन का आगाज हो। जब दुनिया को हर रोज घटित हो ने वाली घटनाओं से रुबरु करते अखबार यह लिखते हैं बेहद मजबुरी में,कि आज यहां यह हो गया, वहां वह हो गया। प्रकृति प्रदत्त घटनाओं पर तो मनुष्य व सरकार का जोर नहीं चलता है लेकिन सरकार बहुत से ऐसे कर्म कर देती है जो नहीं करने चाहिए।समय रहते नहीं रोका जाये तो अनर्थ करते देर नहीं करती है।

 सरकार सार्वजनिक कार्यों को करने के लिए ही चुनी जाती है न की व्यक्तिगत कामों के लिए। हरियाणा सरकार भी यही करने जा रही है। कल के समाचार पत्र में लिखा है कि सरकार सरकारी स्कूलों को बंद करने जा रही है जहां विद्यार्थियों की संख्या कम है। यहां सोचने की बात यह है कि बच्चों की संख्या चार हजार से अधिक है उन्हें बन्द कर दूसरे स्कूलों में भेज दिया जाएगा। यदि चार हजार कम है तो भारत सरकार को जनसंख्या वृद्धि करने का कानून लाना पड़ेगा ताकि बच्चों की संख्या स्कूलों में बढ़ाई जा सके।

    यह सब नीच मानसिकता वाले राज नेताओं की काली करतूत है ताकि अपने प्राइवेट स्कूल अच्छी तरह से चला सके। आज ऐसा नहीं ढूंढा नहीं मिलेगा जिसका अपना स्कूल या कॉलेज न हो। इसलिए वे न तो सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की भर्ती कर रहे हैं। इससे उनको अपने स्कूलों के लिए सस्ते अध्यापक मिल जाते हैं, साथ में यह तीर भी छोड़ दिया है ताकि कम पैसों में काम करो और ज्यादा रुपए दो। भारतीय पार्टी की सरकार ने तो बिल्कुल ही हद कर दी है।

      खुले तौर हर विभाग को व्यक्तिगत बनाने पर तुली है। तथा शौषण काली साम्राज्यवाद लाने जा रही है ताकि अंग्रेज़ी शासन व मुगल काल की तरह लोगों का शौषण व दमन कर सके। समय रहते लोगों ने कदम नहीं उठाया तो गम्भीर परिणाम भोगने पड़ेगें। सब अपनी जेब के आकार में वृद्धि के सिवाय कुछ नहीं कर रहे हैं। दस वर्ष से अध्यापकों की भर्ती नहीं की है।

  सचेत जा समय रहते, नहीं तो आपके बच्चों का भविष्य अंधकारमय होते देर नहीं लगेगी। यदि लोगों ने विरोध नहीं किया तो वे उसी स्कूल को प्राइवेट कर आप से ज्यादा फीस ले लूटेंगे। प्राइवेट स्कूलों में स्लेबस भी उनका अपना होता है। मन माने ढंग की किताबे लागू करते हैं। जिसके फलस्वरूप अभिभावक पर अधिक भार पड़ता है।

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