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Better to Amend Yourself before Any thing goes Wrong.

 If anybody has done the blunder mistake,he must Amend himself, herself or itself before they must face the adverse award by time and super power.

Which make the life hell. Therefore everyone should stop the nonsense of any workmanship . You might not be able to pay dues in one birth. If any such type of body is living in the world of governance ,it is the order to handover the true records to the appropriate authority.

Chyawanprash

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ईवीएम का विकल्प हमारे पास मौजूद है केवल उपयोग करना आना चाहिए।

 चुनाव घोषणा हो ते ही चाहे अगले दिन बिना देश का एक पैसा खर्च किए चुनाव कराए जा सकते हैं बिना किसी दुःख व दुविधा के। जैसे ही पार्टी अपने उम्मीदवारों का चयन कर लें तभी चुनाव घोषित किए जाने चाहिए। केवल जितनी पार्टी है उतने ही मास्टर कम्प्यूटर चाहिए,हर एक पार्टी को चुनाव आयोग के साथ में ताकि चुनाव आयोग गड़बड़ी न कर सके। मोबाइल फोन से वोटर को आधार कार्ड से के नं से वोटिंग करवा लें। केवल एक दिन ही सबको शिक्षित किया जा सकता है इस बारे में। सारी पार्टीयों को अपने दफ्तर के कम्प्यूटर पर उसी दिन बिना गिनती किये पता चल जाएगा कि कितने वोट किस पार्टी को मिले हैं। चुनाव आयोग का कार्य केवल उन सभी के कम्प्यूटर के डाटा को इकट्ठा करना पड़ेगा यह बताने को कि कितने प्रतिशत मतदान हुआ है। बाकी काम पार्टी के कम्प्यूटर कर लेंगे। फूटी कोड़ी तक सरकार की नहीं होगी। चाहे तो कार्य काल समाप्त होने से पहले ही चुनाव सम्पन्न बिना किसी सुरक्षा बल के किया जा सकता है। किसी अधिकारी व कर्मचारी को कोटा पैसा तक सरकार को नहीं देना पड़ेगा टी ए, डी ए के रूप में।  बस बेइमानों को दुःख होगा कि वे धांधली व बेईमानी न कर सके। ...

भारत का संविधान के विजिटर बुक रह गई।

 संविधान का अर्थ सच्चे एक कठोर नियमावली होती है जैसे आग का कार्य जलाना होता है दूसरा नहीं हो सकता है। अब यह संविधान न होकर एक आगंतुक पुस्तिका बना दी है। जिसका कोई औचित्य नहीं होता है केवल इसके कि कोई नुमाइंदा आया था उसमें अपने मन की दो चार भड़ास लिखी व चल दिए। जिसने वे लिखी थी व लिखी हैं वे स्वयं उन पर न चल कर, सरे आम उल्लंघन करते हैं।देश की जन संख्या से ज्यादा उसमें  नेताओं ने संशोधन अपने कर दिए हैं।आम जनता के हित की बात का कोई सरोकार नहीं रहा है। आज बेशर्मी के साथ में करोड़ों रुपए हड़पने के लिए संविधान दिवस मनाया जा रहा है वह सुप्रीम कोर्ट में, जिसके निर्णय का कोई सांसद विधायक पालन सरेआम करते हैं  यदि कानून की सही व्याख्या कर भी दी जाती है तो उसी दिन या अगले दिन संसद में नये कानून लाकर कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा दी जाती है। मुखोटे पहन कर नाटक करने की क्या जरूरत है। संसार में भारत के कानून बेइज्जती होती है उतनी कहीं नहीं होती है। दूसरी बात जिस आदमी ने सारी सृष्टि समाप्त करवा दी थी उसके लिखे कानून के पन्नों में लड़ाईयों के खून की लाली के सिवाय कुछ भी नहीं है चाहे महाभ...