भारतीय रिजर्व बैंक व भारत सरकार ने 200और 500 रुपयों के नोटों को प्रचलन से व सरकारी करंसी से पूर्ण रूप से समाप्त कर देना चाहिए। ये नोट केवल लोगों की समस्याओं को बढ़ावा देने के सिवाय कुछ भी कार्य के नहीं हैं। हर रोज़ खुले रुपए देने के लिए हर लेने दें की जगह पर झगड़े फसाद होते हैं।
आम नागरिक तो रुपए ना घर पर छापता है न बैंक खोले बैठे हैं कि कहीं भी पांच दस बीस रुपए हर किसी को हर जगह दे सके। सरकार ने व बैंकों ने हर जगह पांच सौ कै नोट को ही जारी कर रखा है। छोटे नोट केवल माला बनाने वालों की झुके सिवाय कहीं नहीं मिलते हैं। यह सिस्टम केवल लुटेरों के लिए बना रखा है। यदि लूट खसोट करनी हो तो कम बोझ व जगह के कारण सरकार ने लुटेरों के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ नियम बना रखा है।
इन्टरनेट बैंकिंग क्षेत्र के कारण बड़े नोटों की जरूरत पूरी तरह समाप्त हो चुकी है केवल वोट खरीदने रिश्वत लेने के लिए ही बड़े नोटों का प्रयोग शत-प्रतिशत बचाकर रखा है। और कोई सार्थक कारण किसी भी सृष्टि में नजर नहीं आता है। सरकार से सार्थक निवेदन है कि अपनी जेब भरने की बजाय, जनता को सुलियत देनी सिखनी चाहिए व आनी चाहिए। सरकार ने तरफ तुरंत प्रभाव से कदम उठाने की आवश्यकता है।
देखते है कि कितने समय में यह सरकार झगड़े फसाद करवाने की बजाय उसके कारण को जड़ से उखाड़ दूर करेगी। एक सामाजिक उपयोगिता का कानून बनाने में कितने समय का प्रयोग करेगी। जाति वाद की राजनीति कर अयोग्य लोगों को प्रशासनिक व न्यायिक सेवाओं बैठाकर हर जगह उग्रवाद पैदा करने मोर्चा बना रखा है। सब पांच के नोटों की गड्डी जेब व ड्रायर रखने को निहारते हैं हर एक को। अपनी तनख्वाह से अलग। रोकिये इस कानून को जो अलिखित व अपरोक्ष रूप से बना रखा है।
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